नई दिल्ली । फीस बढ़ाने में स्कूलों की मनमानी नहीं चलेगी। बढ़ाई गई फीस उचित है कि नहीं, इस पर अंतिम फैसला सरकार ही करेगी। शुक्रवार को गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से करारा झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने फीस निर्धारण में सरकार का नियंत्रण समाप्त करने की उनकी मांगें ठुकरा दीं और अपने वर्ष 2004 के फैसले को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 के फैसले को चुनौती देने वाली स्कूलों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। एक्शन कमेटी आफ अनएडेड प्राइवेट स्कूल, सेंट जेवियर्स स्कूल, माटेर डाई स्कूल व न्यू इरा पब्लिक स्कूल ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल कर फीस बढ़ाने में सरकार का नियंत्रण समाप्त करने की मांग की थी। स्कूलों की दलील थी कि फीस निर्धारण का उन्हें पूर्ण हक मिलना चाहिए। वैसे भी दिल्ली स्कूल एजूकेशन रूल 1973 की धारा 17 के तहत बढ़े खर्चो के हिसाब से स्कूलों को फीस बढ़ाने का हक है। शिक्षकों के नए वेतनमान लागू करने के लिए उन्हें फीस बढ़ानी पड़ेगी। उनका कहना था कि कोर्ट का फैसला दिल्ली स्कूल एजूकेशन कानून के खिलाफ है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को खर्च के मुताबिक फीस तय करने की छूट है, लेकिन बढ़ाई गई फीस उचित है कि नहीं, यह राज्य शिक्षा निदेशक ही तय करेंगे। फीस निर्धारण में अंतिम फैसला राज्य शिक्षा निदेशक का ही होगा। कोर्ट ने कहा है कि स्कूल कैपिटेशन फीस अथवा बिल्डिंग आदि के नाम पर पैसा नहीं ले सकते। हालांकि स्कूलों को एक मामले में थोड़ी राहत जरूर मिल गई है। कोर्ट ने कहा कि होने वाली कमाई का अतिरिक्त धन स्कूल उसी संस्था के अन्य स्कूल में लगा सकता है, जबकि पहले स्कूलों को कोष स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 के फैसले को चुनौती देने वाली स्कूलों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। एक्शन कमेटी आफ अनएडेड प्राइवेट स्कूल, सेंट जेवियर्स स्कूल, माटेर डाई स्कूल व न्यू इरा पब्लिक स्कूल ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल कर फीस बढ़ाने में सरकार का नियंत्रण समाप्त करने की मांग की थी। स्कूलों की दलील थी कि फीस निर्धारण का उन्हें पूर्ण हक मिलना चाहिए। वैसे भी दिल्ली स्कूल एजूकेशन रूल 1973 की धारा 17 के तहत बढ़े खर्चो के हिसाब से स्कूलों को फीस बढ़ाने का हक है। शिक्षकों के नए वेतनमान लागू करने के लिए उन्हें फीस बढ़ानी पड़ेगी। उनका कहना था कि कोर्ट का फैसला दिल्ली स्कूल एजूकेशन कानून के खिलाफ है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को खर्च के मुताबिक फीस तय करने की छूट है, लेकिन बढ़ाई गई फीस उचित है कि नहीं, यह राज्य शिक्षा निदेशक ही तय करेंगे। फीस निर्धारण में अंतिम फैसला राज्य शिक्षा निदेशक का ही होगा। कोर्ट ने कहा है कि स्कूल कैपिटेशन फीस अथवा बिल्डिंग आदि के नाम पर पैसा नहीं ले सकते। हालांकि स्कूलों को एक मामले में थोड़ी राहत जरूर मिल गई है। कोर्ट ने कहा कि होने वाली कमाई का अतिरिक्त धन स्कूल उसी संस्था के अन्य स्कूल में लगा सकता है, जबकि पहले स्कूलों को कोष स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं थी।